(प्रस्तावना)
खुदाने कुछ तस्वीर और तक़दीर ऐसी बनाई है कि एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं।कुछ रिश्ते ऐसे बन जाते है कि एक दूसरे से दूर रहना मुश्किल बन जाता है, कुछ रिश्ते ऐसे भी होते है जैसे धरा और गगनकी भाती। एक दूसरे से दूर होने के बावजूद मिलनका अहेसास कराती है।बस,इसी तरह का एक रिश्ता बन जाता है।जिसकी कोई मंजिल या अंतकी परिकल्पना नहीं होती,बस आगे ही बढ़ता जाता है। ऐसी ही एक कहानी है मीरा और सिद्धकी।
दो पल
ये दास्तान शुरू होती है, जब मीरा अपने बिस्तर पे लेटी हुई थी। बैचेनी से मरी जा रही थी। कुछ खोने का एहसास जगा रही थी। पर वह मजबुर थी। न कह रही थी न सह पा रही थी।बस,गहराई में डूबी जा रही थी।
वो हॉस्पिटल के बिस्तर पर लेटी हुई थी। दिल और सांस चल रही थी पर दिमाग रुक गया था। न जाने कौन सी बात पर अपनी मंजिल को रोक लिया था।
थोड़ी जान बची थी, मोबाइल फोनको उठाती है और आखरी ख्वाइश को बयां करती है। सिर्फ यही ख्वाइश को पूरा करने के लिए खुदासे भी दो पलके वक्तकी भीख मांग रही थी।
आंख बंद करके लेटी हुई थी।पांच साल पहले की याद नजर के सामने नाचने लगती है।
" जमानेमे हम न होते तो
ए दुनिया बेख्वाब सी बन जाती।
जीने के लिए मलहम कम
दर्द बन जाती।।।।।।।।"
क्लास रूम में बैंच पर चढ़कर अरमान शेर सुनता है।
हर्ष- वाह...... वाह....वाह....... क्या शेर अर्ज़ किया है!
इलियास - इसे शेर नहीं ,खून चूसना कहते है। सुबह सुबह शुरू हो गया कंजूस।
अरमान - तेरा दिमाग साला नेरो है। कुछ भेजे में जाता ही नहीं। और एक बात, फ्री में तो ऐसा ही सुनना पड़ेगा।
हर्ष - चल इलियास, तू कंजूस नहीं है ये आज बता दे। कुछ खिलादे, पिलादे।
इलियास - साले , मेरा खून मत चूसो, पापाभी सुबह सुबह दिमाग का कोरमा बना देते है। एक रुपया देते नहीं और कितना जिक जीक करते है।
अरमान - इसका तो रोज का है।...... चलो, कोई नई कहानी बनाकर खा लेंगे क्रेडिट पर।
एक ओर हसी मजाक चल रही थी , दूसरी तरफ मीरा के दिमाग में कुछ ओर ही चल रहा था। रात के हसीन स्वप्न से अभी भी बाहर न आ रही हो ऐसा लग रहा था। एक नटखट सी, आसमान में उड़ती चिड़िया के भाती,अपनी लाइफ में हरदम खुश रहने वाली थी मीरा।
पीछे से हल्का धक्का सा लगता है। मीरा मुड़कर देखने जाती है इतने में ही एक लड़की गले लग जाती है। ओर कहती है कि,
" कितने दिनों के बाद मिल रही हो, यार।"
चहेरे पर स्माइल करके मीरा भी जोर से गले लगाती है। मीरा की बेस्ट फ्रेंड 'मीली' थी।
बचपन से ही दोनों साथमे स्कूल जाया करते थे, साथ में पढ़ाई भी किया करते थे और गुमने भी साथ ही जाते थे। दोनों की जोड़ी कभी तुटती नहीं।
यही से रोज कॉलेज के लिए जाया करते है और वापस यही से ही घर जाते है।
" लो , आ गई अपनी सहेली। हम को भी साथ ले चल तुम्हारी मंजिल तक।"
मिली २१ नंबर वाली बस को कहती है। हररोज यही बस से कॉलेज जाया करते है और वापस भी यही बस में आते है। इसलिए बस के साथ गहरा नाता सा हो गया है।
" चल , बस में चढ़ जा नहीं तो दोस्ती टूट जाएगी।"
मीरा मिली को धक्का देती है और मिली एक लड़के से टकरा जाती है।
लड़का - वाह रे वाह! गॉड आज क्यों मुज पर ऐसा बरस रहा है?....
इतने में मीरा..... "ओई.... होई.....तुम क्यों उड़ने लगे हो......"
लड़का - "क्या में..."
मीरा - हा, तुम।
लड़का -" चांदनी खुद आकर टकराई तो भला क्यों न उड़ेंगे हम।"
मिली - " ये जान बुझकर नहीं टकराई.... धक्का लगा इसलिए टकराई।"
लड़का - " फिर भी अच्छा लगा.... आपसे टचिंग हो कर। हाई ! में सिद्ध हु।"
मीरा - हमें GK की जरूरत नहीं है। क्यों दिमाग खा रहे हो।।।।।। मिली घर जाकर दो तीन बार स्नान कर लेना, क्युकी गंदी चीज से टकराई हो।
सिद्ध - हम तो स्नान ही नहीं करेगे महीने तक।
ऐसी ही नोक जोक चल रही थी इतने में कॉलेज आ जाती है। मिली और मीरा बस से उतर कर कॉलेज की ओर जाते है। इतने में पीछे से आवाज आती है। "जरा नाम तो बता दो........"
मीरा - " नाम का क्या करोगे..?"
सिद्ध - "घर जाकर आचार बनालेंगे।"
मिली - "रियल में तुम एक आचार की ही दुकान हो।"
सिद्ध - आचार को दुकान से कभी चख लिया भी करो।
सामने तीन लड़के इलियास, अरमान और हर्ष बैठे हुए होते है। सिद्ध उसी की ओर अपना कदम बढ़ता है , फिर बोल पड़ता है.....,
" Nice meet you. आपको कभी नहीं भूलेंगे ।
मीरा -" हम भी अच्छी तरह से याद रखेंगे। चल मिली, लाइब्रेरी में जाते है।"
मिली - " ओ... छी... लाइब्रेरी ? दुनिया की सबसे बोरिंग जगह पर जाने का नाम ले रही है तु"
मीरा - " चुप कर यार.... मुझे एक बुक लेनी है।"
मिली - "आजकल लव स्टोरी ज्यादा पढ़ रही है , लगता है इश्क विश्क हो गया है तुझे।"
मीरा - चल तो सही , वहां जाकर देखते है ....। "
दोनों लाइब्रेरी की ओर आगे बढ़ते है। इतने में, " मीरा अब कैसा लग रहा है ।" डॉक्टर मीरा से पूछते है। मीरा पुरानी यादों से वापस आकर इशारेमे ही कहती है , ' ठीक हूं।'
डॉक्टर ऑल दी बेस्ट का इशारा करते है और सोने को कहते है। कुछ दवाइयां लिखते है और रूम के बाहर चलने लगते है। रूम के बाहर सभी के चहेरे दुख के मारे उतरे हुए है।मीरा के पिताजी डॉक्टर से मीरा को बचालेने के लिए हाथ जोड़कर बिनती करते है।
" खुदा पर भरोसा रखो।" कहकर डॉक्टर आगे चले जाते है।
मीरा बिस्तर पर लेटी लेटी फिर अपनी यादों की दुनिया में चली जाती है।
क्रमिक.......